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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

हम ही उन को बाम पे लाए और हमीं महरूम रहे
पर्दा हमारे नाम से उट्ठा आँख लड़ाई लोगों ने

I had brought her to the stage and then I was denied
the curtain, in my name, was raised, but others gratified

बहादुर शाह ज़फ़र




कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में

tell all my desires to go find another place
in this scarred heart alas there isn't enough space

बहादुर शाह ज़फ़र




लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में

my heart, these dismal ruins, cannot now placate
who can find sustenance in this unstable state

बहादुर शाह ज़फ़र




लोगों का एहसान है मुझ पर और तिरा मैं शुक्र-गुज़ार
तीर-ए-नज़र से तुम ने मारा लाश उठाई लोगों ने

I owe people a favour and I am grateful to you
they carried my coffin when with a glance you slew

बहादुर शाह ज़फ़र




न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनर
पड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा

while unknowing of myself, in others faults did often see
when my own shortcomings saw, found no one else as bad as me

बहादुर शाह ज़फ़र




तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया

you did not ever think of me even by mistake
and in your thoughts everything else I did forsake

बहादुर शाह ज़फ़र




दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों

bear enmity with all your might, but this we should decide
if ever we be friends again, we are not mortified

बशीर बद्र