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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

जामा-ज़ेबों को क्यूँ तजूँ कि मुझे
घेर रखता है दौर दामन का

वली मोहम्मद वली




जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे

वली मोहम्मद वली




जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे

वली मोहम्मद वली




ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं
यक निगह में ग़ुलाम करते हैं

वली मोहम्मद वली




किशन की गोपियाँ की नईं है ये नस्ल
रहें सब गोपियाँ वो नक़्ल ये अस्ल

वली मोहम्मद वली




किशन की गोपियाँ की नईं है ये नस्ल
रहें सब गोपियाँ वो नक़्ल ये अस्ल

वली मोहम्मद वली




मुफ़लिसी सब बहार खोती है
मर्द का ए'तिबार खोती है

वली मोहम्मद वली