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जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे | शाही शायरी
jise ishq ka tir kari lage

ग़ज़ल

जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

वली मोहम्मद वली

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जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे

न छोड़े मोहब्बत दम-ए-मर्ग तक
जिसे यार-ए-जानी सूँ यारी लगे

न होवे उसे जग में हरगिज़ क़रार
जिसे इश्क़ की बे-क़रारी लगे

हर इक वक़्त मुझ आशिक़-ए-पाक कूँ
प्यारे तिरी बात प्यारी लगे

'वली' कूँ कहे तू अगर यक बचन
रक़ीबाँ के दिल में कटारी लगे