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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

दीवानगी के सिलसिला का होए जो मुरीद
उस गेसू-ए-दराज़ सिवा पीर ही नहीं

वलीउल्लाह मुहिब




दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
गुज़रता है तिरे कूचे से पहले ही क़दम सर से

वलीउल्लाह मुहिब




दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
गुज़रता है तिरे कूचे से पहले ही क़दम सर से

वलीउल्लाह मुहिब




दोस्ती छूटे छुड़ाए से किसू के किस तरह
बंद होता ही नहीं रस्ता दिलों की राह का

वलीउल्लाह मुहिब