दीवानगी के सिलसिला का होए जो मुरीद
उस गेसू-ए-दराज़ सिवा पीर ही नहीं
वलीउल्लाह मुहिब
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दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
गुज़रता है तिरे कूचे से पहले ही क़दम सर से
वलीउल्लाह मुहिब
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दिलों का फ़र्श है वाँ पाँव रखने की कहाँ जागह
गुज़रता है तिरे कूचे से पहले ही क़दम सर से
वलीउल्लाह मुहिब
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दोस्ती छूटे छुड़ाए से किसू के किस तरह
बंद होता ही नहीं रस्ता दिलों की राह का
वलीउल्लाह मुहिब
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