तेरे लब के हुक़ूक़ हैं मुझ पर
क्यूँ भुला दूँ मैं दिल से हक़्क़-ए-नमक
वली मोहम्मद वली
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
जादू हैं तिरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा
वली मोहम्मद वली
याद करना हर घड़ी तुझ यार का
है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का
वली मोहम्मद वली
याद करना हर घड़ी तुझ यार का
है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का
वली मोहम्मद वली
बिगाड़ना सँवारना है वक़्त के मिज़ाज पर
जो ठोकरों में था वो अब गले का हार हो गया
वली शम्सी
ऐ सालिक इंतिज़ार-ए-हज में क्या तू हक्का-बक्का है
बगूले सा तो कर ले तौफ़ दिल पहलू में मक्का है
वली उज़लत
ऐ सालिक इंतिज़ार-ए-हज में क्या तू हक्का-बक्का है
बगूले सा तो कर ले तौफ़ दिल पहलू में मक्का है
वली उज़लत