छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
कि ता जानूँ परी-रू की गली में
वली मोहम्मद वली
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देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का
है मुताला मतला-ए-अनवार का
वली मोहम्मद वली
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दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन
जब ख़याल-ए-सनम चराग़ हुआ
वली मोहम्मद वली
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दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन
जब ख़याल-ए-सनम चराग़ हुआ
वली मोहम्मद वली
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गुल हुए ग़र्क़ आब-ए-शबनम में
देख उस साहिब-ए-हया की अदा
वली मोहम्मद वली
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हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है
देखा है जिस ने हुस्न-ए-तजल्ली बहार का
वली मोहम्मद वली
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हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है
देखा है जिस ने हुस्न-ए-तजल्ली बहार का
वली मोहम्मद वली
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