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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

आँसुओं से कोई आवाज़ को निस्बत न सही
भीगती जाए तो कुछ और निखरती जाए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'
रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'
रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




बस्तियों में होने को हादसे भी होते हैं
पत्थरों की ज़द पर कुछ आईने भी होते हैं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
पियो शराब कि चेहरे पे नूर आ जाए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
पियो शराब कि चेहरे पे नूर आ जाए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब
ग़म-ए-ज़िंदगी से मफ़र भी नहीं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ