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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

तू कौन है ऐ वाइज़ जो मुझ को डराता है
मैं की भी हैं तो की हैं अल्लाह की तक़्सीरें

ताबाँ अब्दुल हई




तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश
बला से तेरी मैं ना-ख़ुश हूँ या ख़ुश

ताबाँ अब्दुल हई




वे शख़्स जिन से फ़ख़्र जहाँ को था अब वे हाए
ऐसे गए कि उन का कहीं नाम ही नहीं

ताबाँ अब्दुल हई




वो तो सुनता नहीं किसी की बात
उस से मैं हाल क्या कहूँ 'ताबाँ'

ताबाँ अब्दुल हई




वो तो सुनता नहीं किसी की बात
उस से मैं हाल क्या कहूँ 'ताबाँ'

ताबाँ अब्दुल हई




यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह
मिन्नतें कर पाँव पड़ उस के ले आऊँ किस तरह

ताबाँ अब्दुल हई




यार से अब के गर मिलूँ 'ताबाँ'
तो फिर उस से जुदा न हूँ 'ताबाँ'

ताबाँ अब्दुल हई