लब-ए-निगार को ज़हमत न दो ख़ुदा के लिए
हम अहल-ए-शौक़ ज़बान-ए-नज़र समझते हैं
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
लब-ए-निगार को ज़हमत न दो ख़ुदा के लिए
हम अहल-ए-शौक़ ज़बान-ए-नज़र समझते हैं
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
मैं ने कब दावा-ए-इल्हाम किया है 'ताबाँ'
लिख दिया करता हूँ जो दिल पे गुज़रती जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
मंज़िलें राह में थीं नक़्श-ए-क़दम की सूरत
हम ने मुड़ कर भी न देखा किसी मंज़िल की तरफ़
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
मंज़िलें राह में थीं नक़्श-ए-क़दम की सूरत
हम ने मुड़ कर भी न देखा किसी मंज़िल की तरफ़
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
मेरे अफ़्कार की रानाइयाँ तेरे दम से
मेरी आवाज़ में शामिल तिरी आवाज़ भी है
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
रह-ए-तलब में किसे आरज़ू-ए-मंज़िल है
शुऊर हो तो सफ़र ख़ुद सफ़र का हासिल है
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ