छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
पियो शराब कि चेहरे पे नूर आ जाए
उठाओ जाम ब-नाम-ए-हयात बादा-कशो
नज़ारे झूमें नज़र को सुरूर आ जाए
शराब-ख़ाने में कौसर का ज़िक्र क्या कहिए
किसी की अक़्ल में जैसे फ़ुतूर आ जाए
मक़ाम-ए-दार से गुज़रो तो ज़िंदगी पाओ
पियो जो ज़हर-ए-हलाहल सुरूर आ जाए
निगाह तेज़ नफ़स गर्म आरज़ू बेबाक
जिसे हो नाज़ हमारे हुज़ूर आ जाए
ये कारोबार-ए-मशियत भी ख़ूब है 'ताबाँ'
किसी पे बर्क़ गिरे ज़द पे तूर आ जाए
ग़ज़ल
छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ