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जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-नगर भी नहीं | शाही शायरी
junun KHud-numa KHud-nagar bhi nahin

ग़ज़ल

जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-नगर भी नहीं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-नगर भी नहीं
ख़िरद की तरह कम-नज़र भी नहीं

किसी राहज़न का ख़तर भी नहीं
कि दामन में गर्द-ए-सफ़र भी नहीं

ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब
ग़म-ए-ज़िंदगी से मफ़र भी नहीं

नज़र मो'तबर है ख़बर मो'तबर
मगर इस क़दर मो'तबर भी नहीं