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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

यार से अब के गर मिलूँ 'ताबाँ'
तो फिर उस से जुदा न हूँ 'ताबाँ'

ताबाँ अब्दुल हई




यहाँ यार और बरदार कोई नहीं किसी का
दुनिया के बीच 'ताबाँ' हम किस से दिल लगावें

ताबाँ अब्दुल हई




ये जो हैं अहल-ए-रिया आज फ़क़ीरों के बीच
कल गिनेंगे हुमक़ा उन ही को पीरों के बीच

ताबाँ अब्दुल हई




ये जो हैं अहल-ए-रिया आज फ़क़ीरों के बीच
कल गिनेंगे हुमक़ा उन ही को पीरों के बीच

ताबाँ अब्दुल हई




ज़ाहिद हो और तक़्वा आबिद हो और मुसल्ला
माला हो और बरहमन सहबा हो और हम हों

ताबाँ अब्दुल हई




ज़ाहिद तिरा तो दीन सरासर फ़रेब है
रिश्ते से तेरे सुब्हा के ज़ुन्नार ही भला

ताबाँ अब्दुल हई




ज़ाहिद तिरा तो दीन सरासर फ़रेब है
रिश्ते से तेरे सुब्हा के ज़ुन्नार ही भला

ताबाँ अब्दुल हई