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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

ग़ुबार-ए-राह चला साथ ये भी क्या कम है
सफ़र में और कोई हम-सफ़र मिले न मिले

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




ग़ुबार-ए-राह चला साथ ये भी क्या कम है
सफ़र में और कोई हम-सफ़र मिले न मिले

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




हमारी तरह ख़राब-ए-सफ़र न हो कोई
इलाही यूँ तो किसी का न राहबर गुम हो

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




जनाब-ए-शैख़ समझते हैं ख़ूब रिंदों को
जनाब-ए-शैख़ को हम भी मगर समझते हैं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




जनाब-ए-शैख़ समझते हैं ख़ूब रिंदों को
जनाब-ए-शैख़ को हम भी मगर समझते हैं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




जुनूँ में और ख़िरद में दर-हक़ीक़त फ़र्क़ इतना है
वो ज़ेर-ए-दर है साक़ी और ये ज़ेर-ए-दाम है साक़ी

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ




किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
कि माहताब तह-ए-आफ़्ताब आया है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ