तबीअत की मुश्किल-पसंदी तो देखो 
हसीनों से तर्क-ए-वफ़ा चाहता हूँ
आसी ग़ाज़ीपुरी
वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी 
ये सच है तो उन का भरोसा नहीं है
आसी ग़ाज़ीपुरी
वो ख़त वो चेहरा वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह तो देखो 
कि शाम सुब्ह के बाद आए सुब्ह शाम के बाद
आसी ग़ाज़ीपुरी
वो फिर वादा मिलने का करते हैं यानी 
अभी कुछ दिनों हम को जीना पड़ेगा
आसी ग़ाज़ीपुरी
मैं आख़िर आदमी हूँ कोई लग़्ज़िश हो ही जाती है 
मगर इक वस्फ़ है मुझ में दिल-आज़ारी नहीं करता
आसी करनाली
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को 
मैं ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं
आसी उल्दनी
बेताब सा फिरता है कई रोज़ से 'आसी' 
बेचारे ने फिर तुम को कहीं देख लिया है
आसी उल्दनी

