वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद
कि तेरे नाम की रट है ख़ुदा के नाम के बाद
वहाँ भी वादा-ए-दीदार इस तरह टाला
कि ख़ास लोग तलब होंगे बार-ए-आम के बाद
गुनाहगार की सुन लो तो साफ़ साफ़ ये है
कि लुत्फ़-ए-रहम-ओ-करम क्या फिर इंतिक़ाम के बाद
तलब तमाम हो मतलूब की अगर हद हो
लगा हुआ है यहाँ कूच हर मक़ाम के बाद
वो ख़त वो चेहरा वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह तो देखो
कि शाम सुब्ह के बाद आए सुब्ह शाम के बाद
पयाम-बर को रवाना किया तो रश्क आया
न हम-कलाम हो उस से मिरे कलाम के बाद
अभी तो देखते हैं ज़र्फ़ बादा-ख़्वारों का
सुबू ओ ख़ुम की भी ठहरेगी दौर-ए-जाम के बाद
इलाही 'आसी'-ए-बेताब किस से छूटा है
कि ख़त में रोज़-ए-क़यामत लिखा है नाम के बाद
ग़ज़ल
वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद
आसी ग़ाज़ीपुरी