अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने
देख ली शाम ने ताबिंदा सहर की सूरत
अातिश बहावलपुरी
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
और बीमार की दशा बिगड़ी
अातिश बहावलपुरी
दर-हक़ीक़त इत्तिसाल-ए-जिस्म-ओ-जाँ है ज़िंदगी
ये हक़ीक़त है कि अर्बाब-ए-हिमम के वास्ते
अातिश बहावलपुरी
ग़म-ओ-अलम भी हैं तुम से ख़ुशी भी तुम से है
नवा-ए-सोज़ में तुम हो सदा-ए-साज़ में तुम
अातिश बहावलपुरी
गिला मुझ से था या मेरी वफ़ा से
मिरी महफ़िल से क्यूँ बरहम गए वो
अातिश बहावलपुरी
जो चाहते हो बदलना मिज़ाज-ए-तूफ़ाँ को
तो नाख़ुदा पे भरोसा करो ख़ुदा की तरह
अातिश बहावलपुरी
ख़ूगर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार था इतना 'आतिश'
दर्द भी माँगा तो पहले से सिवा माँगा था
अातिश बहावलपुरी