जहाँ अपना क़िस्सा सुनाना पड़ा
वहीं हम को रोना रुलाना पड़ा
आसी उल्दनी
कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना
वो क्या करे जिस को कोई उम्मीद नहीं हो
आसी उल्दनी
मुरत्तब कर गया इक इश्क़ का क़ानून दुनिया में
वो दीवाने हैं जो मजनूँ को दीवाना बताते हैं
आसी उल्दनी
सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन
होश उड़ जाते हैं अब भी तिरी आवाज़ के साथ
आसी उल्दनी
बर्क़ बाराँ तीरगी और ज़लज़ला
बदला बदला सा है मौसम का मिज़ाज
आसिम शहनवाज़ शिबली
घर घर जा कर जो सुने लोगों की फ़रियाद
उस को अपने घर में ही मिले न कोई दाद
आसिम शहनवाज़ शिबली
कैसे निखरे शाएरी और तर्ज़-ए-इज़हार
इस में होता है मियाँ ख़ून-ए-दिल दरकार
आसिम शहनवाज़ शिबली