EN اردو
2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम
कुछ और साथ में परछाइयाँ लगा लाए

आशुफ़्ता चंगेज़ी




तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र
रास्तों के जाल में उलझा हूँ मैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी




ऊँची उड़ान के लिए पर तौलते थे हम
ऊँचाइयों पे साँस घुटेगी पता न था

आशुफ़्ता चंगेज़ी




ये और बात कि तुम भी यहाँ के शहरी हो
जो मैं ने तुम को सुनाया था मेरा क़िस्सा है

आशुफ़्ता चंगेज़ी




ये बात याद रखेंगे तलाशने वाले
जो उस सफ़र पे गए लौट कर नहीं आए

आशुफ़्ता चंगेज़ी




ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
फिर फँसा ज़ुल्फ़ों में दिल फिर वही आफ़त आई

आसी ग़ाज़ीपुरी




बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
वो दर्द दिल में दे कि मसीहा कहें जिसे

आसी ग़ाज़ीपुरी