तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम
कुछ और साथ में परछाइयाँ लगा लाए
आशुफ़्ता चंगेज़ी
तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र
रास्तों के जाल में उलझा हूँ मैं
आशुफ़्ता चंगेज़ी
ऊँची उड़ान के लिए पर तौलते थे हम
ऊँचाइयों पे साँस घुटेगी पता न था
आशुफ़्ता चंगेज़ी
ये और बात कि तुम भी यहाँ के शहरी हो
जो मैं ने तुम को सुनाया था मेरा क़िस्सा है
आशुफ़्ता चंगेज़ी
ये बात याद रखेंगे तलाशने वाले
जो उस सफ़र पे गए लौट कर नहीं आए
आशुफ़्ता चंगेज़ी
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
फिर फँसा ज़ुल्फ़ों में दिल फिर वही आफ़त आई
आसी ग़ाज़ीपुरी
बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
वो दर्द दिल में दे कि मसीहा कहें जिसे
आसी ग़ाज़ीपुरी