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आई है अब याद क्या रात इक बीते साल की | शाही शायरी
aai hai ab yaad kya raat ek bite sal ki

ग़ज़ल

आई है अब याद क्या रात इक बीते साल की

मुनीर नियाज़ी

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आई है अब याद क्या रात इक बीते साल की
यही हवा थी बाग़ में यही सदा घड़ियाल की

महक अजब सी हो गई पड़े पड़े संदूक़ में
रंगत फीकी पड़ गई रेशम के रूमाल की

शहर में डर था मौत का चाँद की चौथी रात को
ईंटों की इस खोह में दहशत थी भौंचाल की

शाम झुकी थी बहर पर पागल हो कर रंग से
या तस्वीर थी ख़्वाब में मेरे किसी ख़याल की

उम्र के साथ अजीब सा बन जाता है आदमी
हालत देख के दुख हुआ आज उस परी-जमाल की

देख के मुझ को ग़ौर से फिर वो चुप से हो गए
दिल में ख़लिश है आज तक इस अन-कहे सवाल की