अगर ख़मोश रहूँ मैं तो तू ही सब कुछ है
जो कुछ कहा तो तिरा हुस्न हो गया महदूद
माहिर-उल क़ादरी
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है
दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
माहिर-उल क़ादरी
इब्तिदा वो थी कि जीने के लिए मरता था मैं
इंतिहा ये है कि मरने की भी हसरत न रही
At the start, life prolonged,was my deep desire
now at the end, even for death, I do not aspire
माहिर-उल क़ादरी
इक बार तुझे अक़्ल ने चाहा था भुलाना
सौ बार जुनूँ ने तिरी तस्वीर दिखा दी
माहिर-उल क़ादरी
नक़ाब-ए-रुख़ उठाया जा रहा है
वो निकली धूप साया जा रहा है
from the confines of the veil your face is now being freed
lo sunshine now emerges, the shadows now recede
माहिर-उल क़ादरी
परवाने आ ही जाएँगे खिंच कर ब-जब्र-ए-इश्क़
महफ़िल में सिर्फ़ शम्अ जलाने की देर है
माहिर-उल क़ादरी
सुनाते हो किसे अहवाल 'माहिर'
वहाँ तो मुस्कुराया जा रहा है
माहिर-उल क़ादरी
यही है ज़िंदगी अपनी यही है बंदगी अपनी
कि उन का नाम आया और गर्दन झुक गई अपनी
माहिर-उल क़ादरी
ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
माहिर-उल क़ादरी