हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं
दिलों को दर्द से आबाद रखना चाहते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
इक ख़्वाब ही तो था जो फ़रामोश हो गया
इक याद ही तो थी जो भुला दी गई तो क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं
तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं
इफ़्तिख़ार मुग़ल
रश्क से नाम नहीं लेते कि सुन ले न कोई
दिल ही दिल में उसे हम याद किया करते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
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वो नहीं भूलता जहाँ जाऊँ
हाए मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ
इमाम बख़्श नासिख़
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई
इक़बाल अशहर
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई
इक़बाल अशहर