बारहा उन से न मिलने की क़सम खाता हूँ मैं
और फिर ये बात क़स्दन भूल भी जाता हूँ मैं
इक़बाल अज़ीम
हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते
अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते
इक़बाल अज़ीम
ज़ियान-ए-दिल ही इस बाज़ार में सूद-ए-मोहब्बत है
यहाँ है फ़ाएदा ख़ुद को अगर नुक़सान में रख लें
इक़बाल कौसर
बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है
उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है
इरफ़ान सिद्दीक़ी
इश्क़ में क्या नुक़सान नफ़अ है हम को क्या समझाते हो
हम ने सारी उम्र ही यारो दिल का कारोबार किया
जाँ निसार अख़्तर
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
जाँ निसार अख़्तर
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी
जाँ निसार अख़्तर