बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था
वो हो रहा है यहाँ जो न होने वाला था
और अब ये चाहता हूँ कोई ग़म बटाए मिरा
मैं अपनी मिट्टी कभी आप ढोने वाला था
तिरे न आने से दिल भी नहीं दुखा शायद
वगर्ना क्या मैं सर-ए-शाम सोने वाला था
मिला न था प बिछड़ने का ग़म न था मुझ को
जला नहीं था मगर राख होने वाला था
हज़ार तरह के थे रंज पिछले मौसम में
पर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था

ग़ज़ल
बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था
जमाल एहसानी