देख कर दिल-कशी ज़माने की
आरज़ू है फ़रेब खाने की
ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की
ज़ुल्मतों से न डर कि रस्ते में
रौशनी है शराब-ख़ाने की
आ तिरे गेसुओं को प्यार करूँ
रात है मिशअलें जलाने की
किस ने साग़र 'अदम' बुलंद किया
थम गईं गर्दिशें ज़माने की
ग़ज़ल
देख कर दिल-कशी ज़माने की
अब्दुल हमीद अदम