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देख कर दिल-कशी ज़माने की | शाही शायरी
dekh kar dil-kashi zamane ki

ग़ज़ल

देख कर दिल-कशी ज़माने की

अब्दुल हमीद अदम

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देख कर दिल-कशी ज़माने की
आरज़ू है फ़रेब खाने की

ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की

ज़ुल्मतों से न डर कि रस्ते में
रौशनी है शराब-ख़ाने की

आ तिरे गेसुओं को प्यार करूँ
रात है मिशअलें जलाने की

किस ने साग़र 'अदम' बुलंद किया
थम गईं गर्दिशें ज़माने की