ज़ख़्म दिल के अगर सिए होते
अहल-ए-दिल किस तरह जिए होते
वो मिले भी तो इक झिझक सी रही
काश थोड़ी सी हम पिए होते
आरज़ू मुतमइन तो हो जाती
और भी कुछ सितम किए होते
लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उस ने
हौसले भी 'अदम' दिए होते
ग़ज़ल
ज़ख़्म दिल के अगर सिए होते
अब्दुल हमीद अदम