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दिल शायरी | शाही शायरी

दिल

292 शेर

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी




तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी




दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक
ऐसे ज़ख़्म को अच्छा कर के बैठ गए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही




दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में

गुलज़ार




ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है
दर्द दिल का लिबास होता है

गुलज़ार




सब्र ऐ दिल कि ये हालत नहीं देखी जाती
ठहर ऐ दर्द कि अब ज़ब्त का यारा न रहा

हबीब अशअर देहलवी




दिल लिया है तो ख़ुदा के लिए कह दो साहब
मुस्कुराते हो तुम्हीं पर मिरा शक जाता है

हबीब मूसवी