आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर
ये क़ाफ़िला भी नक़्ल-ए-मकानी में खो गया
अब्बास ताबिश
आ देख कि मेरे आँसुओं में
ये किस का जमाल आ गया है
अदा जाफ़री
जोखम ऐ मर्दुम-ए-दीदा है समझ के रोना
डूब भी जाते हैं दरिया में नहाने वाले
आग़ा हज्जू शरफ़
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
आँख से हो कर गाल भिगो कर मिट्टी में मिल जाएगा
अहमद मुश्ताक़
रोक ले ऐ ज़ब्त जो आँसू कि चश्म-ए-तर में है
कुछ नहीं बिगड़ा अभी तक घर की दौलत घर में है
अहसन मारहरवी
वो माज़ी जो है इक मजमुआ अश्कों और आहों का
न जाने मुझ को इस माज़ी से क्यूँ इतनी मोहब्बत है
अख़्तर अंसारी
अश्क जब दीदा-ए-तर से निकला
एक काँटा सा जिगर से निकला
अख़तर इमाम रिज़वी