ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है
कोई कहता है मोती है कोई कहता है पानी है
फ़िगार उन्नावी
याद अश्कों में बहा दी हम ने
आ कि हर बात भुला दी हम ने
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
गुलज़ार
वो पूछते हैं दिल-ए-मुब्तला का हाल और हम
जवाब में फ़क़त आँसू बहाए जाते हैं
हादी मछलीशहरी
आँख कम-बख़्त से उस बज़्म में आँसू न रुका
एक क़तरे ने डुबोया मुझे दरिया हो कर
हफ़ीज़ जालंधरी
रसा हों या न हों नाले ये नालों का मुक़द्दर है
'हफ़ीज़' आँसू बहा कर जी तो हल्का कर लिया मैं ने
हफ़ीज़ मेरठी
दो घड़ी दर्द ने आँखों में भी रहने न दिया
हम तो समझे थे बनेंगे ये सहारे आँसू
हकीम नासिर