मैं ने चाहा था कि अश्कों का तमाशा देखूँ
और आँखों का ख़ज़ाना था कि ख़ाली निकला
साक़ी फ़ारुक़ी
आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला
सरवर आलम राज़
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
यूँ बूँद बूँद उतरी हमारे घरों में रात
शहरयार
अब अपने चेहरे पर दो पत्थर से सजाए फिरता हूँ
आँसू ले कर बेच दिया है आँखों की बीनाई को
शहज़ाद अहमद
कभू तू रो तो उस को ख़ाक ऊपर जा के ऐ लैला
कि बिन पानी जंगल में रूह मजनूँ की भटकती है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मेरे आँसू के पोछने को मियाँ
तेरी हो आस्तीं ख़ुदा न करे
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
क्या कहूँ दीदा-ए-तर ये तो मिरा चेहरा है
संग कट जाते हैं बारिश की जहाँ धार गिरे
शकेब जलाली