हाल-ए-परेशाँ सुन कर मेरा आँख में उस की आँसू हैं
मैं ने उस से झूट कहा हो ऐसा भी हो सकता है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
यूँ तो अश्कों से भी होता है अलम का इज़हार
हाए वो ग़म जो तबस्सुम से अयाँ होता है
मक़बूल नक़्श
अश्क-ए-ग़म दीदा-ए-पुर-नम से सँभाले न गए
ये वो बच्चे हैं जो माँ बाप से पाले न गए
मीर अनीस
क्या कहूँ किस तरह से जीता हूँ
ग़म को खाता हूँ आँसू पीता हूँ
मीर असर
और कुछ तोहफ़ा न था जो लाते हम तेरे नियाज़
एक दो आँसू थे आँखों में सो भर लाएँ हैं हम
मीर हसन
इतने आँसू तो न थे दीदा-ए-तर के आगे
अब तो पानी ही भरा रहता है घर के आगे
मीर हसन
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं
मोहम्मद अल्वी