उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं
बशीर बद्र
आँसू मिरी आँखों में हैं नाले मिरे लब पर
सौदा मिरे सर में है तमन्ना मिरे दिल में
बेखुद बदायुनी
वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है
अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है
बिस्मिल साबरी
नासेह ने मेरा हाल जो मुझ से बयाँ किया
आँसू टपक पड़े मिरे बे-इख़्तियार आज
दाग़ देहलवी
अश्कों के निशाँ पर्चा-ए-सादा पे हैं क़ासिद
अब कुछ न बयाँ कर ये इबारत ही बहुत है
अहसन अली ख़ाँ
मेरी इक उम्र और इक अहद की तारीख़ रक़म है जिस पर
कैसे रोकूँ कि वो आँसू मिरी आँखों से गिरा जाता है
फ़रहत एहसास
सितारों से शब-ए-ग़म का तो दामन जगमगा उठ्ठा
मगर आँसू बहा कर हिज्र के मारों ने क्या पाया
फ़ारूक़ बाँसपारी