न वो सूरत दिखाते हैं न मिलते हैं गले आ कर
न आँखें शाद होतीं हैं न दिल मसरूर होता है
लाला माधव राम जौहर
हैं तसव्वुर में उस के आँखें बंद
लोग जानें हैं ख़्वाब करता हूँ
मीर मोहम्मदी बेदार
'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
मीर तक़ी मीर
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आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
'अल्वी' प्यारे देखो साला दिन निकला
मोहम्मद अल्वी
आँख से आँख मिलाना तो सुख़न मत करना
टोक देने से कहानी का मज़ा जाता है
मोहसिन असरार
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अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें
मोहसिन नक़वी
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कब उन आँखों का सामना न हुआ
तीर जिन का कभी ख़ता न हुआ
मुबारक अज़ीमाबादी