उन झील सी गहरी आँखों में
इक लहर सी हर दम रहती है
रसा चुग़ताई
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लोग करते हैं ख़्वाब की बातें
हम ने देखा है ख़्वाब आँखों से
साबिर दत्त
मैं ने चाहा था कि अश्कों का तमाशा देखूँ
और आँखों का ख़ज़ाना था कि ख़ाली निकला
साक़ी फ़ारुक़ी
कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'
साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई
शहरयार
अब अपने चेहरे पर दो पत्थर से सजाए फिरता हूँ
आँसू ले कर बेच दिया है आँखों की बीनाई को
शहज़ाद अहमद
तुम्हारी आँख में कैफ़िय्यत-ए-ख़ुमार तो है
शराब का न सही नींद का असर ही सही
शहज़ाद अहमद