जो आए हश्र में वो सब को मारते आए
जिधर निगाह फिरी चोट पर लगाई चोट
अहमद हुसैन माइल
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
अख़्तर अंसारी
लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं
अपनी आँखों को झुकाए रखना
अख़्तर होशियारपुरी
बहें न आँख से आँसू तो नग़्मगी बे-सूद
खिलें न फूल तो रंगीनी-ए-फ़ुग़ाँ क्या है
अख़्तर सईद ख़ान
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है
अख़्तर शीरानी
उन आँखों में डाल कर जब आँखें उस रात
मैं डूबा तो मिल गए डूबे हुए जहाज़
अमीक़ हनफ़ी
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
वो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है
show me not your anger dear show me your youthful prime
the wealth that you have covered up is truly sublime
अमीर मीनाई