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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

दिल क्या मिलाओगे कि हमें हो गया यक़ीं
तुम से तो ख़ाक में भी मिलाया न जाएगा

how will you join hearts with me for I do now believe
from you a decent burial I will not receive

दाग़ देहलवी




दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया

she takes my heart for free and yet holds it in disdain
far from showing gratitude, she ventures to complain

दाग़ देहलवी




होश ओ हवास ओ ताब ओ तवाँ 'दाग़' जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया

consciousness and sanity, zeal, power are no more
it's time for me to go as well, my goods have gone before

दाग़ देहलवी




इस नहीं का कोई इलाज नहीं
रोज़ कहते हैं आप आज नहीं

ah! this denial, nothing can allay
every day you say no, not today

दाग़ देहलवी




जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई

where virgins aged a million years reside
hopes for such a heaven why abide

दाग़ देहलवी




कहीं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में
कोई क़ातिल से मिलता है कोई बिस्मिल से मिलता है

festive joy in places, elsewhere gloom of genocide
some like the murderer rejoice, some victim-like abide

दाग़ देहलवी




कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी

from voicing my emotions, love makes me refrain
grievances come to my lips but silent there remain

दाग़ देहलवी