अपनी कहानी दिल में छुपा कर रखते हैं
दुनिया वालों को हैरान नहीं करते
आलम ख़ुर्शीद
बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से
आलम ख़ुर्शीद
चारों तरफ़ हैं शोले हम-साए जल रहे हैं
मैं घर में बैठा बैठा बस हाथ मल रहा हूँ
आलम ख़ुर्शीद
दिल रोता है चेहरा हँसता रहता है
कैसा कैसा फ़र्ज़ निभाना होता है
आलम ख़ुर्शीद
गुज़िश्ता रुत का अमीं हूँ नए मकान में भी
पुरानी ईंट से तामीर करता रहता हूँ
आलम ख़ुर्शीद
हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
भीड़ बहुत है इस मेले में खो सकता हूँ मैं
आलम ख़ुर्शीद
इस फ़ैसले से ख़ुश हैं अफ़राद घर के सारे
अपनी ख़ुशी से कब मैं घर से निकल रहा हूँ
आलम ख़ुर्शीद

