हज़ार कारवाँ यूँ तो हैं मेरे साथ मगर
जो मेरे नाम है वो क़ाफ़िला कब आएगा
अकरम नक़्क़ाश
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इश्क़ इक ऐसी हवेली है कि जिस से बाहर
कोई दरवाज़ा खुले और न दरीचा निकले
अकरम नक़्क़ाश
जैसे पानी पे नक़्श हो कोई
रौनक़ें सब अदम-सबात रहीं
अकरम नक़्क़ाश
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जियूँगा मैं तिरी साँसों में जब तक
ख़ुद अपनी साँस में ज़िंदा रहूँगा
अकरम नक़्क़ाश
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कुछ तो इनायतें हैं मिरे कारसाज़ की
और कुछ मिरे मिज़ाज ने तन्हा किया मुझे
अकरम नक़्क़ाश
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मयस्सर से ज़ियादा चाहता है
समुंदर जैसे दरिया चाहता है
अकरम नक़्क़ाश
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रख्खूँ कहाँ पे पाँव बढ़ाऊँ किधर क़दम
रख़्श-ए-ख़याल आज है बे-इख़्तियार फिर
अकरम नक़्क़ाश
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