माँगती है अब मोहब्बत अपने होने का सुबूत
और मैं जाता नहीं इज़हार की तफ़्सील में
आलम ख़ुर्शीद
मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में
आलम ख़ुर्शीद
पीछे छूटे साथी मुझ को याद आ जाते हैं
वर्ना दौड़ में सब से आगे हो सकता हूँ मैं
आलम ख़ुर्शीद
रात गए अक्सर दिल के वीरानों में
इक साए का आना जाना होता है
आलम ख़ुर्शीद
तब्दीलियों का नश्शा मुझ पर चढ़ा हुआ है
कपड़े बदल रहा हूँ चेहरा बदल रहा हूँ
आलम ख़ुर्शीद
तहज़ीब की ज़ंजीर से उलझा रहा मैं भी
तू भी न बढ़ा जिस्म के आदाब से आगे
आलम ख़ुर्शीद
तमाम रंग अधूरे लगे तिरे आगे
सो तुझ को लफ़्ज़ में तस्वीर करता रहता हूँ
आलम ख़ुर्शीद

