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किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है | शाही शायरी
kisi ke hath mein jam-e-sharab aaya hai

ग़ज़ल

किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
कि माहताब तह-ए-आफ़्ताब आया है

निगाह-ए-शौक़ मुबारक नशात-ए-गुल-चीनी
रुख़-ए-निगार पे रंग-ए-इताब आया है

सज़ा-ए-ज़ोहद शब-ए-माहताब क्या कम थी
कि रोज़-ए-अब्र भी बन के अज़ाब आया है

ज़िया-ए-हुस्न ओ फ़रोग़-ए-हया की आमेज़िश
शफ़क़ की गोद में या आफ़्ताब आया है

तिरी निगाह की हल्की सी एक जुम्बिश से
जहान-ए-शौक़ में क्या इंक़लाब आया है