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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

हाए वो ज़िंदगी की इक साअत
जो तिरी बारगाह में गुज़री

शकील बदायुनी




हम से मय-कश जो तौबा कर बैठें
फिर ये कार-ए-सवाब कौन करे

शकील बदायुनी




हर चीज़ नहीं है मरकज़ पर इक ज़र्रा इधर इक ज़र्रा उधर
नफ़रत से न देखो दुश्मन को शायद वो मोहब्बत कर बैठे

शकील बदायुनी




हर चीज़ नहीं है मरकज़ पर इक ज़र्रा इधर इक ज़र्रा उधर
नफ़रत से न देखो दुश्मन को शायद वो मोहब्बत कर बैठे

शकील बदायुनी




हर दिल में छुपा है तीर कोई हर पाँव में है ज़ंजीर कोई
पूछे कोई इन से ग़म के मज़े जो प्यार की बातें करते हैं

शकील बदायुनी




जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई
दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई

शकील बदायुनी




जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई
दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई

शकील बदायुनी