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ज़िंदगी उन की चाह में गुज़री | शाही शायरी
zindagi unki chah mein guzri

ग़ज़ल

ज़िंदगी उन की चाह में गुज़री

शकील बदायुनी

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ज़िंदगी उन की चाह में गुज़री
मुस्तक़िल दर्द-ओ-आह में गुज़री

रहमतों से निबाह में गुज़री
उम्र सारी गुनाह में गुज़री

हाए वो ज़िंदगी की इक साअ'त
जो तिरी बारगाह में गुज़री

सब की नज़रों में सर-बुलंद रहे
जब तक उन की निगाह में गुज़री

मैं वो इक रहरव-ए-मोहब्बत हूँ
जिस की मंज़िल भी राह में गुज़री

इक ख़ुशी हम ने दिल में चाही थी
वो भी ग़म की पनाह में गुज़री

ज़िंदगी अपनी ऐ 'शकील' अब तक
तल्ख़ी-ए-रस्म-ओ-राह में गुज़री