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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

मल्बूस ख़ुश-नुमा हैं मगर जिस्म खोखले
छिलके सजे हों जैसे फलों की दुकान पर

शकेब जलाली




मल्बूस ख़ुश-नुमा हैं मगर जिस्म खोखले
छिलके सजे हों जैसे फलों की दुकान पर

शकेब जलाली




मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
मेरा साया है जो दीवार पे जम जाएगा

शकेब जलाली




मुझे गिरना है तो मैं अपने ही क़दमों में गिरूँ
जिस तरह साया-ए-दीवार पे दीवार गिरे

शकेब जलाली




न इतनी तेज़ चले सर-फिरी हवा से कहो
शजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है

शकेब जलाली




न इतनी तेज़ चले सर-फिरी हवा से कहो
शजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है

शकेब जलाली




प्यार की जोत से घर घर है चराग़ाँ वर्ना
एक भी शम्अ न रौशन हो हवा के डर से

शकेब जलाली