वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत
मैं उस गली में अकेला था और साए बहुत
शकेब जलाली
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वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत
मैं उस गली में अकेला था और साए बहुत
शकेब जलाली
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वक़्त की डोर ख़ुदा जाने कहाँ से टूटे
किस घड़ी सर पे ये लटकी हुई तलवार गिरे
शकेब जलाली
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वक़्त ने ये कहा है रुक रुक कर
आज के दोस्त कल के बेगाने
शकेब जलाली
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वक़्त ने ये कहा है रुक रुक कर
आज के दोस्त कल के बेगाने
शकेब जलाली
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वो अलविदा'अ का मंज़र वो भीगती पलकें
पस-ए-ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है
शकेब जलाली
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ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ कहाँ बरसे
तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है
शकेब जलाली
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