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मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा | शाही शायरी
mujhse milne shab-e-gham aur to kaun aaega

ग़ज़ल

मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा

शकेब जलाली

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मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
मेरा साया है जो दीवार पे जम जाएगा

ठहरो ठहरो मिरे असनाम-ए-ख़याली ठहरो
मेरा दिल गोशा-ए-तन्हाई में घबराएगा

लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ को
ज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा

अज़्म पुख़्ता ही सही तर्क-ए-वफ़ा का लेकिन
मुंतज़िर हूँ कोई आ कर मुझे समझाएगा

आँख झपके न कहीं राह अँधेरी ही सही
आगे चल कर वो किसी मोड़ पे मिल जाएगा

दिल सा अनमोल रतन कौन ख़रीदेगा 'शकेब'
जब बिकेगा तो ये बे-दाम ही बिक जाएगा