फ़क़त ज़मान ओ मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आया
जो एक मसअला-ए-दर्द था अभी तक है
शहराम सर्मदी
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मिरे अलावा सभी लोग अब ये मानते हैं
ग़लत नहीं थी मिरी राय उस के बारे में
शहराम सर्मदी
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मिरे अलावा सभी लोग अब ये मानते हैं
ग़लत नहीं थी मिरी राय उस के बारे में
शहराम सर्मदी
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आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
ख़ौफ़ के मारे जुदा शाख़ से पत्ता न हुआ
शहरयार
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आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई
शहरयार
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई
शहरयार
आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए
हम को शुमार करती रही दुश्मनों में रात
शहरयार
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