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आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई | शाही शायरी
aankh ki ye ek hasrat thi ki bas puri hui

ग़ज़ल

आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई

शहरयार

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आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई

आ रही है जिस्म की दीवार गिरने की सदा
इक अजब ख़्वाहिश थी जो अब के बरस पूरी हुई

इस ख़िज़ाँ-आसार लम्हे की हिकायत है यही
इक गुल-ना-आफ़्रीदा की हवस पूरी हुई

आग के शो'लों से सारा शहर रौशन हो गया
हो मुबारक आरज़ू-ए-ख़ार-ओ-ख़स पूरी हुई

कैसी दस्तक थी कि दरवाज़े मुक़फ़्फ़ल हो गए
और इस के साथ रूदाद-ए-क़फ़स पूरी हुई