आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई
आ रही है जिस्म की दीवार गिरने की सदा
इक अजब ख़्वाहिश थी जो अब के बरस पूरी हुई
इस ख़िज़ाँ-आसार लम्हे की हिकायत है यही
इक गुल-ना-आफ़्रीदा की हवस पूरी हुई
आग के शो'लों से सारा शहर रौशन हो गया
हो मुबारक आरज़ू-ए-ख़ार-ओ-ख़स पूरी हुई
कैसी दस्तक थी कि दरवाज़े मुक़फ़्फ़ल हो गए
और इस के साथ रूदाद-ए-क़फ़स पूरी हुई
ग़ज़ल
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
शहरयार