आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
ख़ौफ़ के मारे जुदा शाख़ से पत्ता न हुआ
रूह ने पैरहन-ए-जिस्म बदल भी डाला
ये अलग बात किसी बज़्म में चर्चा न हुआ
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
काम अच्छा न था अंजाम भी अच्छा न हुआ
वक़्त की डोर को थामे रहे मज़बूती से
और जब छूटी तो अफ़्सोस भी इस का न हुआ
ख़ूब दुनिया है कि सूरज से रक़ाबत थी जिन्हें
उन को हासिल किसी दीवार का साया न हुआ
ग़ज़ल
आँधियाँ आती थीं लेकिन कभी ऐसा न हुआ
शहरयार