EN اردو
ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है | शाही शायरी
ba-nam-e-ishq ek ehsan sa abhi tak hai

ग़ज़ल

ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है

शहराम सर्मदी

;

ब-नाम-ए-इश्क़ इक एहसान सा अभी तक है
वो सादा-लौह हमें चाहता अभी तक है

फ़क़त ज़मान ओ मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आया
जो एक मसअला-ए-दर्द था अभी तक है

शुरू-ए-इश्क़ में हासिल हुआ जो देर के बअ'द
वो एक सिफ़्र तह-ए-हाशिया अभी तक है

हुलूल कर चुकी ख़ुद में हज़ार नक़्श ओ रंग
ये काएनात जो ख़ाका-नुमा अभी तक है

तवील सिलसिला-ए-मस्लहत है चार तरफ़
यक़ीन कर ले मिरी जाँ ख़ुदा अभी तक है