बहुत शोर था जब समाअ'त गई
बहुत भीड़ थी जब अकेले हुए
शहरयार
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बताऊँ किस तरह अहबाब को आँखें जो ऐसी हैं
कि कल पलकों से टूटी नींद कि किर्चें समेटीं हैं
शहरयार
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बे-नाम से इक ख़ौफ़ से दिल क्यूँ है परेशाँ
जब तय है कि कुछ वक़्त से पहले नहीं होगा
शहरयार
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बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है
शहरयार
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है
शहरयार
चल चल के थक गया है कि मंज़िल नहीं कोई
क्यूँ वक़्त एक मोड़ पे ठहरा हुआ सा है
शहरयार
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देखने के लिए इक चेहरा बहुत होता है
आँख जब तक है तुझे सिर्फ़ तुझे देखूँगा
शहरयार
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