मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है
वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है
अहमद मुश्ताक़
मिलने की ये कौन घड़ी थी
बाहर हिज्र की रात खड़ी थी
अहमद मुश्ताक़
मोहब्बत मर गई 'मुश्ताक़' लेकिन तुम न मानोगे
मैं ये अफ़्वाह भी तुम को सुना कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
मुझे मालूम है अहल-ए-वफ़ा पर क्या गुज़रती है
समझ कर सोच कर तुझ से मोहब्बत कर रहा हूँ मैं
अहमद मुश्ताक़
नए दीवानों को देखें तो ख़ुशी होती है
हम भी ऐसे ही थे जब आए थे वीराने में
अहमद मुश्ताक़
नींदों में फिर रहा हूँ उसे ढूँढता हुआ
शामिल जो एक ख़्वाब मिरे रत-जगे में था
अहमद मुश्ताक़
पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है
ये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है
अहमद मुश्ताक़